Monday 15 February 2016

पैरोडी


मेरी बात हर, तेरा ज़िक्र है
मेरी जान  तू, तेरी फ़िक्र है
है खुशनुमां, मेरा हमज़िगर
दिल   बेकरार,   बेसब्र   है
तेरे इश्क़  का  ऐसा  जुनूं  देखा नहीं  अब तक कहीं
तेरे हुस्न की कुछ खुशबुएँ, मेरे ज़िस्म को छूकर गयीं 
इश्क़ है, ये इश्क़ है, तेरे हुस्न का ये इश्क़ है
तूने  ही  बढ़ाई,  मेरी  आशिक़ी  में  शिद्दत
तेरे पास आकर जाना, बेहतर है मेरी किस्मत 

ये आसमां और ये ज़मीं
तेरे  प्यार में मानों सनीं
ये तितलियाँ और हर कली
तेरे  रंग  में  मानों मिलीं 
इश्क़ है, ये इश्क़ है, तेरे हुस्न का ये इश्क़ है 

तू जो मिला मुझे सब मिला
या  रब  मेरे,  तेरा  शुक्र  है
मेरे  रहनुमां, मेरे  हमसफ़र
मेरी  शान  तू, मेरा फ़ख्र है
इश्क़ है, ये इश्क़ है, तेरे हुस्न का ये इश्क़ है
तूने  ही  बढ़ाई,  मेरी  आशिक़ी  की  शिद्दत
तेरे पास आकर जाना, बेहतर है मेरी किस्मत 

तुझे जब मिला, तब हूँ खिला
मुझे  याद  है  हर  सिलसिला
तेरी  दिल्लगी,  तेरी  बन्दगी
मेरी  आशिक़ी का  हर शिला
इश्क़ है, ये इश्क़ है, तेरे हुस्न का ये इश्क़ है
मेरी जान, जानें  जाना, किया  इंतज़ार अबतक
तेरा साथ ही जुनूं है, सारी मुश्किलों की हदतक 

हर फूल में, हर ख्वाब में, बस तेरी ही तस्वीर है
कहीं  आसमां, कहीं  है ज़मीं, कहीं  राझना कोई  हीर  है
कभी हमज़ुबां, कभी हमनशीं कभी नैनों का तू नीर है
मेरी  शोहरतें, मेरी  हसरतें, मेरे दिल की तू ज़ागीर है
इश्क़ है, ये इश्क़ है, तेरे हुस्न का ये इश्क़ है 

तूने  ही  बढ़ाई,  मेरी  आशिक़ी  की  शिद्दत
तेरे पास आकर जाना, बेहतर है मेरी किस्मत
तेरी हर अदा, पे  दिल फ़िदा, तेरे  इश्क़  का  छाया  नशा
हर  शय  तेरा   दीदार  हो,  रग–रग  में  तू   छाया  बसा
तेरी  याद  में  खोया  कभी, कभी  रात  भर  यूँ  ही  जगा
तुझे सोंचकर कभी गम मिला, खुलकर कभी जी भर हँसा
इश्क़ है, ये इश्क़ है, तेरे हुस्न का ये इश्क़ है
तूने  ही  बढ़ाई,  मेरी  आशिक़ी  की  शिद्दत
तेरे पास आकर जाना, बेहतर है मेरी किस्मत       

तुझे माँगता रहा  मैं,  उम्मीद  की  दर-ब-दर
तुझे चाहता रहा मैं, रहा अश्कों से तर-ब-तर
ज़िंदगी, ये ज़िंदगी, मेरी ज़िंदगी का ज़श्न है
इश्क़ है, ये इश्क़ है, तेरे इश्क़ का ये हुस्न है
ये  दिलकशी, मेरी  हर ख़ुशी, इस दिल का ये आवारापन
कभी इस गली, कभी उस कली, इस इश्क़ का बंजारापन
मिलता बड़ी मुश्किल से है, हम  जैसा ये  दीवानापन
मेरी  चाहतों  में  है  जुनूं,  मेरा  हर  जुनूं  परवानापन
इश्क़ है, ये इश्क़ है, तेरे हुस्न का ये इश्क़ है 

तूने  ही  बढ़ाई,  मेरी  आशिक़ी  की  शिद्दत
तेरे पास आकर जाना, बेहतर है मेरी किस्मत
तेरी खूबियाँ, तेरी ख़ामियाँ, मेरे इश्क़ का हैं आशियां
बाबुल तेरे बस  हैं  खफ़ा, जो  हैं  जुदा  मेरी जातियाँ
अफ़सोस  है,  हमें  रोष  है, क्यों  बेटियाँ  हैं  दासियाँ
ख़ामोश है  क्यों  ये  जहां,  यहाँ लग रही  हैं फासियाँ
तूने  ही  बढ़ाई,  मेरी  आशिक़ी  की  शिद्दत
तेरे पास आकर जाना, बेहतर है मेरी किस्मत 
इश्क़ है, ये इश्क़ है, तेरे हुस्न का ये इश्क़ है...................

मुक्तक


मोहब्बत  को  बाज़ारों  में, कभी बिकते नहीं देखा
समन्दर  के  किनारों  को, कभी  हँसते नहीं देखा  
जिएं बिंदास हरपल हम, रहें खुश और दें खुशियाँ  
गुज़रते  वक़्त  को  हमने,  कभी थमते  नहीं देखा  

मोहब्बत  में  नुमाईश  की, ज़रुरत  ही  नहीं पड़ती  
कहीं भी  कोई  गुंजाइश,  कभी शक़ की नहीं रहती
मोहब्बत  की  है  तो  बेहतर,  इसे  अंजाम भी देना
किया बदनाम तो रब की, कभी रहमत नहीं मिलती

तुम्हारी  बंदिशे  तुमको,  कभी  हँसने  नहीं  देंगी
तुम्हारे  ख़्वाब को  तुमसे, कभी मिलने नहीं देंगी
ज़हाँ  की  बेरहम  रश्में, कई  दिल  तोड़ जायेंगी
मगर दो दिल मोहब्बत में, कभी मिलने नहीं देंगी   

शिक़ायत है मुझे उससे, जो दुनिया का रचयिता है
मोहब्बत  ही तो की  मैंने, मेरी इसमें  ख़ता क्या है
तेरे दर-दर पे भटका हूँ, बहुत कर ली गुज़ारिश भी
सिवा ज़ख्मों के, बतला दे, मेरे दिल में बचा क्या है 

तेरी  आँखों  का  पानी  ये,  बयां  करता  कहानी है
हमें  भी  है   खबर  कि  तू, सादिल  की  दीवानी  है
हमें   ताउम्र   ख़ुशहाली,  नज़र  आई   मोहब्बत  में
दुआएं   साथ   तेरे   हैं,  रशम  तुझको  निभानी  है 

रश्में  भी   ज़रूरी   हैं,  मगर  जो  साथ  चलती  हों
बदलते वक़्त के माफ़िक जो खुद को भी बदलती हों
रश्में  वो  ज़हर  सी  हैं  जो  लोगों  को ज़ुदा  कर दें
रहें  रश्में  वो सदियों तक, जो सबको एक करती हों

मोहब्बत  में  जवां दो  दिल, कभी बालिग नहीं होते
मोहब्बत  में  गिले  शिक़वे, कभी  वाज़िब नहीं होते
कभी ग़म है तो खुशियाँ हैं, यही रंग-ढंग है जीने का
ये  रिश्ते  प्यार  के सबको,  मुनासिब  भी नहीं होते 

उसे  रखा  है  चिड़िया  सा, हमेशा  कैद पिंज़रे  में
खिले जो  ख्वाब  दिल में हैं, रहे  सब डूब खतरे में
  जाने  क्यूं  मोहब्बत  पे, लगीं  पाबंदियां  इतनी
कि लड़के- लड़कियाँ अक्सर, हैं देते जान सदमे में 

तेरे  मज़हब  की  करतूतें, कभी  बढ़ने  नहीं  देंगी
मोहब्बत  की  ये  तालीमें, कभी  पढ़ने नहीं  देंगी
तुझे  चिड़िया सा रखेगीं, किसी सोने के पिंज़रे में
मगर चिड़िया सा अम्बर में, कभी उड़ने नहीं देंगी

नये  ख़यालों  को,  खिलने दो - पलने दो  |
बच्चों  को  बच्चों सा, बनने दो - बनने दो ||

जब मंजिल  है  कोई, तो पथ  होंगे अपने  |
जब है ज़िद और जुनूं, तो सच होंगे सपने ||
घर – आँगन  में  खेलूँ, भौरों  संग मैं घूमूँ |
तितली  का साथी  बन, फूलों को मैं चूमूँ ||
इस धरती पर  तो माँ, तू ही तो अपनी है |
मैं हूँ  एक पंछी  सा, तू ही तो समझती है ||
             माँ खुले आसमाँ में,  उड़ने दो - उड़ने दो |
             बच्चों  को बच्चों सा, बनने दो - बनने दो ||

सूरज  की  ये  किरणें,  करती  हैं   जहां  रौशन |
बादलों की रिमझिम से, खिलते हैं वन - उपवन ||
जब     घूमें   ये   पवनें,   झूमें   मेरा  तन - मन |
चंदा   की  चांदनी   में,   रातें   हँसती  हर क्षन ||
राहें   जाने   कितनी,  नदियों    की    होती  हैं |
पर   आखिर  में  जाकर,  सागर  में   सोती  हैं ||
             माँ  मुझको  नदियों सा, बहने दो - बहने दो |
             बच्चों  को  बच्चों  सा,  बनने दो - बनने दो ||

क्यों   शान्त  कभी  इतना,  रहता  है  समंदर यों |
बच्चों सा  कभी  इतना, फिर है ये उछलता क्यों  ||
क्यों   इस   धरती  को  ये,   बाहों  में  सिमेटे  है  |
ये   हवा  की  चादर  क्यों , धरती  को  लिपेटे है  ||
मैं   हूँ   छोटा   पर   माँ,   मुझमें   भी  समंदर है  |
है  नीर  नहीं   जिसमें,   सपनों  का  सिकंदर है  ||
                   माँ  मुझको समंदर सा, एक  बार  लहरने दो |
                   बच्चों  को  बच्चों  सा,   बनने दो - बनने दो ||

नदियाँ  ये  बहती  हैं, पर नीर नहीं पीतीं |
क्यों सेवा में सबकी, हैं जीवन भर जीतीं ||
क्यों नहीं पेड़ सब ये, फल अपने खाते हैं |
हम सबको जाने क्यों, छाया पहुँचाते हैं ||
बादल  ये  आसमाँ  से, पानी बरसाते हैं |
क्या इसके बदले ये, कुछ मुझसे पाते हैं ||
                माँ मुझको  बादलों  सा, एक  बार  बरसने दो |
                बच्चों  को  बच्चों  सा,  बनने  दो - बनने  दो ||

हम  क्यों  इन  चिड़ियों  सा,  उड़  सकते नहीं हैं  |
हम  क्यों   इन  पवनों  सा,  बह  सकते  नहीं  हैं  ||
चलती   फिरती   धरती,   क्यों   रुकती  नहीं  है |
क्या   इस    धरती   जैसी,  बस्ती  भी  कहीं  है  ||
गिरते    बहते     झरने,   क्यों    थकते   नहीं  हैं  |
तारे    ये    आसमाँ   के,   क्यों   बुझते   नहीं  हैं ||
                    माँ  मुझको  तारों सा, एक बार  चमकने दो |
                    बच्चों  को  बच्चों  सा,  बनने दो - बनने दो ||